Wednesday 9 January 2019

बढते बाल अपराध, उत्तरदायी कौन?


(यह आलेख  पालकों के लिए चिंतन-मनन का एक अवसर देने के उद्देश्य से लिखा है।)

  बढ़ते बाल अपराध! उत्तरदायी कौन?

सर्वप्रथम नववर्ष पर विश्व के सभी नौनिहालों को बधाई व शुभकामना। ईश्वर उन्हें वह सभी सुख सुविधा लाड़ दुलाल दें, जिनके व जितने के वे हकदार हैं।
इतना कम भी नहीं कि समाज में उपेक्षित कहलाएँ और इतना ज्यादा भी नहीं समाज की ही उपेक्षा करने लगें।

      यह विषय निश्चित ही उद्देलित कर देता है।  बढ़ते बाल अपराधों के लिए क्या दोष केवल किसी एक का ही है?
उत्तर में सभी स्वीकार करेंगे, कि कहीं न कहीं इसकी जड़ में प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से पालक, शिक्षक व समाज सभी सम्मिलित हैं।

भौतिक सुख सुविधा जुटाने की जद्दोजहद में पारिवारिक वातावरण भी लगभग संवाद हीन व संवेदन शून्य होता जा रहा है। रिश्तों की मर्यादा
सांस्कृतिक व नैतिक मूल्य  बड़े ही भूल गये तो बच्चों को सिखाये कैसे?
बौद्धिक सफलता व प्रगति के मायने बदल गये। मानसिक विकास की परिभाषा बदल गयी। पालकों ने केवल बच्चों की हर माँग को पूरा करना ही अपना दायित्व मान लिया है। उचित अनुचित का बोध यदि है, तो भी बच्चों को विश्वास में लेकर समझाना उचित नहीं समझा। एक अंधी दौड़ में शामिल होना मानो बाध्यता है, विवशता है।

बच्चों की हर डिमांड पूरा करने के एवज में आशा-अपेक्षा का पिटारा उसके आगे खोल दिया जाता है। अविकसित समझ, अपरिपक्व बुद्धि, करे तो क्या करे? उसके हमउम्र दोस्त भी तो उसके जैसे ही हैं। कोचिंग सेंटर, विद्यालय केवल किताबी ज्ञान का लाइव-टेलीकास्ट मात्र रह गया। संप्रेषण कितना हुआ? व्यवहारिक कितना है? अवधारण स्पष्ट हुई या नहीं?
यह जानने समझने का काम क्या इन संस्थानों का नहीं माना जाता?
इज दैट क्लियर? अंडरस्टैण्ड,? ओ. के! ठीक है! बस यही गूँजते रह जाते हैं।
बच्चा भी उस भीड़ के देखादेखी "यस सर, यस मेम" कहना सीख लेता है। रही सही कसर समाज अर्थात हम आप पूरी कर देते  हैं। बच्चा चाकू खरीद रहा है! क्यों? यह प्रश्न क्या दुकानदार के मन में आया होगा?
काश! पूछा होता उससे कि क्या करोगे इतने बड़े चाकू का? क्यों पूछे!!!! वैसे भी गिने चुने ग्राहक। उन्हें भी हाथ से जाने दें!

पिता ने भी जानने की कोशिश नहीं की कि क्या करता है इतने पैसौं का? बस्ता में किताबों के साथ और क्या रखता है उनका लाडला?
क्यों देखें? बच्चा बड़ा हो गया  है! बड़े स्कूल में पढ़ रहा है। बड़े  सपने लाद दिये हैं, तो किस अधिकार से देखें कि बस्ते में ड्राइंग बाक्स  है या ड्रग की पुड़िया? उद्देलित होकर या आक्रोश दर्शा कर हम अपने दायित्व से नहीं बच सकते।

ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति से बचने के लिए बच्चों का सुखद व सुरक्षित भविष्य सुनिश्चित करने में पालक, शिक्षक, समाज व स्वयं बच्चों को समन्वित प्रयास करने होंगे। क्योंकि बच्चों के उज्ज्वल भविष्य में ही परिवार का, समाज का, राष्ट्र का व विश्व का उज्जवल भविष्य छिपा है। केवल अपेक्षा नहीं अपने दायित्व भी समझने होंगे। किसी मशहूर शायर का यह शेर ऐसे समय बहुत याद आता है ---
"उसको क्या हक है कि क़तरे से समंदर माँगे,
जिसने सिखलाया नहीं कतरे को दरिया होना।"
              #राजेंद्र श्रीवास्तव #

 

Monday 3 December 2018

नवगीत

मुन्ना अब मतदान करेगा
   *****
छोड़ पलायन का स्वभाव वह
पिता, पितामह का।
मुन्ना अब मतदान करेगा
हुआ अठारह का।

नहीं किसी उत्सव से कम यह
अवसर आया है।
उसके लिए सैकड़ों आशा
सपने लाया है।
घूम रहा उत्साहित होकर वह चहका-चहका।
मुन्ना भी मतदान करेगा हुआ अठारह का।

उसने तय कर लिया परख कर-
वोट किसे देना।
यद्यपि प्रत्याशी सब आए
ले अपनी सेना।
मिले प्रलोभन, वादे लाखों नहीं मगर वहका।
मुन्ना भी मतदान करेगा हुआ अठारह का।

बूझ रहा वह, कौन जीत कर
जन-सेवा देगा
कौन जीत कर केवल अपनी
कोठी भर लेगा।
और कौन मन बना रहा है नौ दो ग्यारह का।
मुन्ना भी मतदान करेगा हुआ अठारह का।

मुनिया भी तो इसी बरस अब
हुई अठारह की।
मतदाता सूची से जुड़कर
वह भी तो चहकी।
यह उपकार नहीं,और न ही काम अनुग्रह का।
मुन्ना भी मतदान करेगा हुआ अठारह का।
                      #राजेंद्र श्रीवास्तव #

नवगीत

         नवगीत
         @@
धनीराम का खेत, गरीबा
पानी सींच रहा।
जहाँ खेत है, कभी वहाँ पर
छोटा जंगल था।
नदिया का गहरा निर्मल जल
बहता कल-कल था।
टुल्लु पम्प उन्ही खेतों में, नदी उलीच रहा।
धनीराम का खेत, गरीबा,पानी सींच रहा।

दूर गाँव की पगडंडी पर
बिजली का खम्भा।
वहीं हेकड़ी से लटका है
तार बहुत लम्बा।
बिन मीटर खम्भे से सीधे, बिजली खींच रहा।
धनीराम का खेत गरीबा, पानी सींच रहा।

दिन भर की मजदूरी फिर यह
बरवस बेगारी।
टुल्लु के पानी में बहती
रही रात सारी।
जाग रहा वह कभी नींद से, आँखें मींच रहा।
धनीराम का खेत गरीबा, पानी सींच रहा।

धनीराम आ कर बेमतलब
काम बढ़ाता है।
गाली देकर सात पुश्त की
याद दिलाता है।
मिट्टी सना गरीबा केवल, मुठ्ठी भींच रहा।
धनीराम का खेत गरीबा,पानी सींच रहा।
                                   #राजेंद्र श्रीवास्तव #

Sunday 4 November 2018

(गीत) आओ दीये ले जाओ

आओ दीये ले जाओ।

बाबू जी शुभ हो दीवाली, आओ दीये ले जाओ
लौट रहे हो खाली-खाली आओ दीये ले जाओ।

यह दीये चिकनी माटी के,और हमारी महनत के
लाएँगे घर में खुशहाली, आओ दीये ले जाओ।

इन दीपों को ले लो बाबू, थोड़ी सी कीमत देकर
जगमग हो पूजा की थाली,आओ दीये ले जाओ।

वैसे तो बाजार भरा है, तरह तरह के दीपों से
इन दीयों की बात निराली,आओ दीये ले जाओ।

इन्हें बेच कर खील बताशा और नारियल ले लूँगा.       और फुलझड़ी सस्ती  वाली ,आओ दीये ले  जाओ।

बच्चों को कपड़े ले लूँगा, वह भी खुश हो जाएँगे
नाचेंगे दे-दे कर ताली, आओ दीये ले जाओ।

किसी तरह बस थोड़े में हम, दीपावली मना लेंगे
जैसी पिछले साल मना ली,आओ दीये ले जाओ।
                      #राजेंद्र श्रीवास्तव #

Friday 2 November 2018

गीत


गीत
@@

कतरा-कतरा मिलकर हम
दरिया बन जाएँगे ।

घाटी से मैदानों की
हम राह पकड़ लेंगे
ऊबड़-खाबड़ दुर्गम पथ
को समतल कर देंगे
अवरोधों के पर्वत भी -
फिर नजर न आएँगे ।

कतरा-कतरा मिलकर हम
दरिया बन जाएँगे ।

छोटे या नगण्य भी जब
अपनी पर आते हैं।
उँगली-उँगली मिल कर तब
मुठ्ठी बन जाते है।
भिंची हुई मुठ्ठियाँ लिए
आक्रोश जताएँगे । 

कतरा-कतरा मिलकर हम
दरिया बन जाएँगे ।

कतरे को यदि सीप मिले
तो मोती बन जाए
बूँद-बूँद के संग्रह से
खाली घट भर जाए।
बह जाएँगे  नयनों से
आँसू कहलाएँगे।

कतरा-कतरा मिलकर हम
दरिया बन जाएँगे ।
       ***.              #राजेन्द्र श्रीवास्तव #












Thursday 25 October 2018

एक गीत


  
🌕
पूरनमासी चाँद शरद का
लगता कितना प्यारा
खोज रहा है किसे? गगन में
व्याकुल मन-बंजारा।
      🌕
साँझ ढले से नीलगगन का
लगा रहा है फेरा 
होश नहीं है निशा गयी कब
कब आ गया सबेरा।
आशाओं के साथ डूबता
चला भोर का तारा।
पूरनमासी चाँद शरद का
लगता कितना प्यारा।
                🌕
निर्मल सी चाहत चकोर की
शशि ने कब पहिचानी
अनदेखा कर रहा प्रीत को
  निर्मोही अभिमानी
  उठा रहा लहरें रह-रह कर
  आकुल सागर  खारा।
  पूरनमासी चाँद शरद का
  लगता कितना प्यारा।
                        🌕
    धवल चाँदनी धन्य धरा पर
    मुक्त हस्त फैलाता
    छिटक रहे मेघों में जाकर
    फिर कुछ पल छिप जाता।
    आज लुटा देगा अवनि पर
    यह  नेहामृत   सारा।
                            🌕 #राजेन्द्र श्रीवास्तव #

Monday 22 October 2018

बाल कविता


(बाल कविता)

       मच्छर भाई
           ~~~
'मच्छर भाई' - ' राम-राम,'
हाथ जोड़कर तुम्हें प्रणाम।
बड़े बड़े   तुम से डरते हैं
कहने को  छोटा है नाम।

                तुम कितने दुबले पतले हो 
                हड्डी का न नाम निशान।                                                                                 
               लेकिन बड़े पहलवानों की-
               कर देते   आफत में जान।

रोटी दाल-भात न   खाते
मीठा देख नहीं ललचाते।
धीमे से भी फूँक दिया तो-
पूरे पाँच फीट  उड़ जाते।

                   पास हमारे जब भी आते
                   सारे रोम  खड़े हो  जाते।
                   नानी याद हमे आ जाती -
                   जब तुम भन-भन-भन भन्नाते।

जहाँ है कीचड़, पानी, घास-
वही तुम्हारा प्रिय आवास।
जो स्वच्छ रखते घर अपना -
उनके नहीं  फटकते  पास।

                     दिल्ली हो  या   देहरादून
                     जब आता है तुम्हें जुनून।
                     होकर मस्त रात-दिन गाते-
                     चूस चूस कर सबका खून।

उड़ते रहते हो  दिन-रैन
तुमको आता नहीं है चैन।
फैलाते हो रोग  मलेरिया -
खाना पड़ती  हमे  कुनैन।

                      मच्छर दानी  से   टकराते
                      लेकिन भीतर पहुँच न पाते
                      हर कोशिश निष्फल हो जाती
                      बाहर  रह  जाते   भन्नाते।
                              राजेंद्र प्रसाद श्रीवास्तव 

Wednesday 17 October 2018

गीत

गीत
@@

हम हैं समर्थ क्या कुछ, वश में नहीं हमारे
छू लें अभी चमकते, आकाश के सितारे।


हथियार हैं हमारे-  कौशल व बुद्धिमानी
संकल्प-शक्ति, साहस संयम व सावधानी।
थक हार कर कभी भी, हमने कदम न रोके-
अवरोध बहुत आये, लेकिन न हार मानी।
विश्वास है हमारा, इन शक्तियों के बल पर -
हम हस्तगत करेंगे, तय लक्ष्य शीघ्र सारे।

छू ले अभी चमकते, आकाश के सितारे ।

अब एक-दूसरे का,  सहयोग  हम करेंगे
भ्रातृत्व भाव अपना , कायम सदा रखेंगे।
संसार को नवेली,   नव प्रीत-रीत देंगे
इस प्रीत के सहारे, हर जंग जीत लेंगे।
अपनत्व बाँट कर हम, अपनत्व माँग लेंगे
कोई नहीं पराया, सब मीत हैं हमारे।

छू लें अभी चमकते, आकाश के सितारे ।

क्यों चल रहे अकेले, आओ, समीप आओ
तुम साथ में हमारे, मिल कर कदम बढ़ाओ।
मन में न मीत लाओ, संदेह या हताशा
विश्वास के तराने, निर्भीक  गुनगुनाओ।
इंसानियत के नगमे, जब तक रहें लवों पर-
होंगे नहीं अलहदा, स्वर आपके हमारे।
 
छू लें अभी चमकते, आकाश के सितारे ।
                #राजेंद्र श्रीवास्तव #





Monday 1 October 2018

बापू की तस्वीर

बापू की तस्वीर
    @@@

बापू की तस्वीर किसी कमरे में
कभी न टाँग सके,
उनके आदर्शों से न जुड़ पाए
न ही भाग सके।

कायम रहीं दूरियाँ अब तक
प्रेम व सद् व्यवहार से,
बढ़ती रही मित्रता प्रतिदिन
बड़ते भ्रष्टाचार से।
सच को अपना नहीं सके
न ही हिंसा को त्याग सके।

उनके आदर्शों से न जुड़ पाए
न ही भाग सके।

करुणा, दया, मनुजता का हम
पाठ कभी का भूल गये,
वैमनस्यता के वृक्षों पर
नित नित बढ़ते शूल नये।
सीखा नहीं क्षमा करना
न क्षमा किसी से माँग सके।

उनके आदर्शों से न जुड़ पाए
न ही भाग सके।

परहित, पीर-परायी भूले-
भुला दिया भाईचारा,
अकर्मण्यता, कुंठाओं में
जकड़ गया जीवन सारा।
होती रही अज़ान, प्रभाती
लेकिन हम न जाग सके।

उनके आदर्शों से न जुड़ पाए
न ही भाग सके।
                      #राजेंद्र श्रीवास्तव #

Friday 28 September 2018

गीत

   गीत
    @@

दूषण दूर करें गंगा के
चलो जतन सब लोग करें

युगों-युगों तक यह 'माँ गंगा'
'पतित पावनी' कहलाई,
लेकिन वही पुण्य सलिला माँ,
देती दूषित दिखलाई।

जीवनदायी गंगाजल का
सब समुचित उपभोग करें।। दूषण दूर....

हमने गंगा को 'माँ' माना
बेटे बनकर दिखलाएँ,
जो दूषित कर रहे नदी को
टोकें उनको समझाएँ।
करें प्रदूषित जो गंगा को
ऐसे न  उद्योग करें।। दूषण दूर....

कितनी बदबू और गंदगी
घाट-घाट पर है फैली,
हम सब की नादानी से ही
हुई आज गंगा मैली।
संकल्पित श्रम से, गंगा को
निर्मल और निरोग करें।। दूषण दूर....
      ***.         राजेन्द्र प्रसाद श्रीवास्तव
                       
      


Tuesday 25 September 2018

गीत "शहरों की आवाजाही ने गाँव बिगाड़ा है ।

गीत @@
शहरों की आवाजाही ने
गाँव बिगाड़ा है।

डामर गिट्टी सनी सड़क यह
अजगर सी सोयी
छिन्न भिन्न अस्तित्व हीन सी
पगडंडी रोयी।
पथिक छाँव पाते पथ का वह
नीम उखाड़ा है।

इकलौती बस से भिन्सारे
कीरत जाता है
और उसी मोटर से संझा
वापस आता है
मजदूरी का एक फीसदी
लगता भाड़ा है।

टिका गया हर माल खोट का
दलपत सस्ते में
गुटका, पाउच, मिलते अब
बच्चों के बस्ते में
युवा-मनों पर अवसादों ने
झंडा गाड़ा है।

#राजेंद्र श्रीवास्तव #

Tuesday 11 September 2018

बाल कविता संग्रह

बाल-कविताएँ  
         ********

1-    सरस्वती वंदना
            ***
माँ सरस्वती हमको वर दो
दया दृष्टि हम पर कर दो।
तामस तमस मिटे सब मन का
जीवन में शुचिता भर दो।

क्लांत हृदय को शाँत कर सकें
भय व भ्रम का अंत कर सकें
मानवता के गीत गा सकें
ऐसा मुखर मधुर स्वर दो।

सत्य तथ्य का भाषण कर सकें
हर्ष और उल्लास भर सकें।
अक्षर-अक्षर  ऊर्जामय हो
रचनाएँ सार्थक कर दो।

ज्ञान सुधा रसपान कर सकें
नीर-क्षीर पहचान कर सकें
हृदयंगम कर सकें सत्य को
वरद-हस्त सिर पर धर दो।

हंस-वाहिनी माँ वर दो।
      ***

2-  किताबें
     ःःःःःः
     मेरी अच्छी मित्र किताबें
     सीधी-सच्ची मित्र किताबें
     कुछ छोटी कुछ मोटी-मोटी
     सार्थक ,और सचित्र किताबें।

     कृषि ,खेल विज्ञान की बातें
     जल थल आसमान की बातें
     अंतरिक्ष -अभियान की बातें
     कितनी चित्र-विचित्र किताबें।

     बुरा-भला का ज्ञान करातीं
     धर्म और ईमान  सिखातीं
     मानवता का पाठ पढ़ातीं
     गढ़ती सहज चरित्र किताबें।

     जितना  समय इन्हें हम देंगे
     नयी-नयी बातें  सीखेंगे
     इनका आदर करना सीखें
     पावन परम पवित्र किताबें।
         ----------------
3-     *आँखें*
           ःःःः
     ईश्वर ने दी हैं दो आँखें
    सोचो क्यों दी हैं ये आँखें
    जीवन अंधकार मय होता
    अगर नहीं होती ये आँखें।

    ये प्रकाश  का ज्ञान करातीं
    रंगों की पहिचान करातीं
    कौन,कहाँ कितनी दूरी पर?
    यह अभिज्ञान करातीं आँखें।

    कम प्रकाश में पढ़ना छोड़ें
     टी.वी.नाता न जोङें
    धूल,धुआँ व तेज धूप से
    दृष्टिहीन हो जाती आँखें।

    अरुणोदय की अरुण रश्मियाँ
    गाजर,पालक हरी सब्जियाँ
    इन सब के नियमित सेवन से-
     तेज युक्त हो जाती आँखें।

    दृष्टिहीन कुछ मित्र हमारे
    उनके जीवन में अंधियारे
    इस जग से जाने से पहिले
    उनको दान करें हम आँखें।
              -------------
4-          *गिलहरी*
               ःःःःःः
इस कोने से उस कोने तक-
छत पर धूम मचाये गिलहरी।
जरा कहीं आवाज हुई तो-
यहाँ-वहाँ छिप जाय गिलहरी ।

छत से दीवारों परआये
दीवारों से छत पर जाये।
कभी-कभी सूनापन पाकर-
आँगन में आ जाय गिलहरी ।

आँखें इसकी निश्छल न्यारी
तन पर तीन सुनहरी धारी।
दौङ-भाग से फुरसत पाकर
झबरी पूँछ हिलाये गिलहरी ।

पेङों पर भी  चढ़ जाती है
कुतर-कुतर कर फल खाती है।
कभी दूर से,कभी पास से
मेरा मन बहलाये गिलहरी ।
         ------------
5   -  जलचक्र
    ःःःःः
सूरज का जब ताप बढ़ा
पानी बनकर भाप उङा
उङ कर भाप चली आकाश
फिर भी  वह न हुई उदास ।

फिर  मिलजुल कर किया प्रयास
हुए संगठित  आये पास
संगठन की तो शक्ति अपार
एक से दो और दो से चार।

मिले परस्पर मेघ बने
काले गहरे और घने
चले,जिस तरफ हवा चली
गरजें बादल,चमके बिजली ।

राह में वन,पर्वत आये
कुछ आपस में टकराये
वृक्षों से कुछ बात हुई
फिर रिमझिम बरसात हुई ।

बर्षा-जल धरती पर आया
जैसा खोया वैसा पाया
जल-चक्र की यही कहानी
जल से मेघ- मेघ से पानी ।
       -------------
6-    बधाई
       ःःःः
लेकर कलम और कम्पास
मन में उमंग और विश्वास
नहीं परीक्षा का कोई भय
रुचिता पहुँची विद्यालय ।

पढ़ने में है उसे लगन
करती वह नियमित अध्ययन
प्रश्नपत्र लगे उसे सरल
किया सभी प्रश्नों को हल ।

पेपर सभी बनाये ठीक
उत्तर लिखे सही-सटीक
लेखन भी उसका सुंदर
मोती जैसे चमकें अक्षर।

मिला परीक्षा का परिणाम
सबसे आगे उसका नाम
सब बिषयों में मेरिट पाई
देते उसको सभी  बधाई ।
      -----------      
7-     मंजन
         ***
एक था राजा एक थी रानी
उनकी थी एक बिटिया रानी ।
नन्ही सुंदर राजकुमारी
राजदुलारी सबकी प्यारी ।

                 हँस कर जब करती वह बात
                  चमकें मोती जैसे  दाँत ।
                खाती वह पकवान मिठाई
                 दाँतों की न करे सफाई ।

न मंजन न ही दातौन
उसे भला समझाये कौन!
कुछ ही महिनों के पश्चात
सङने लगे चमकते दाँत।
            
               राज-वैद्य को तब बुलवाया
               वह बेचारा दौङा आया।
               मंजन अच्छा एक बनाया
              राजकुमारी को समझाया।

यदि है इन दाँतों से प्यार
मंजन करो रोज दो बार।
सुबह जागरण तब हो मंजन
रात्रि-शयन से पहिले मंजन।

                     बिटिया ने कहना माना
                     मंजन का महत्व  जाना।
                    कुछ ही महिनों के पश्चात
                    चमके मोती जैसे  दाँत ।
                        ******
8--   मच्छर भाई
            ~~~
मच्छर भाई राम-राम,हाथ जोड़कर तुम्हें प्रणाम
बड़े बड़े तुम से डरते हैं कहने को छोटा है नाम।     तुम कितने दुबले पतले हो हड्डी का न नाम निशान।
लेकिन बड़े पहलवानों की- कर देते आफत में जान।

रोटी दाल-भात न खाते मीठा देख नहीं ललचाते।
धीमे से भी फूँक दिया तो-पूरे पाँच फीट  उड़ जाते।
पास हमारे जब भी आते सारे रोम  खड़े हो  जाते।
नानी याद हमे आ जाती - जब तुम भन-भन-भन भन्नाते।

जहाँ है कीचड़, पानी, घास वही तुम्हारा प्रिय आवास।
जो स्वच्छ रखते घर अपना - उनके नहीं  फटकते  पास।
दिल्ली हो  या   देहरादून जब आता है तुम्हें जुनून।
होकर मस्त रात-दिन गाते-चूस चूस कर सबका खून।

केवल खून चूसकर भी तो तुमको आता नहीं है चैन।
फैलाते हो रोग  मलेरिया - खाना पड़ती  हमे  कुनैन।
आपकी दुश्मन मच्छर दानी उसके भीतर पहुँच न पाते
हर कोशिश निष्फल हो जाती बाहर रह जाते   भन्नाते।
                                  ***
9-    बच्चों की मनमानी
            *****
सोनू मोनू, रिंकी पिंकी, घर से बाहर आए
और साथ में एक बड़ी सी, बाॅल वहाँ ले लाए।
अभी अभी ही बंद हुई थी, मेघों की मनमानी
हरे-भरे मैदान में अब तक, भरा हुआ था पानी।

रिंकी ने पिंकी को देखा, पिंकी ने सोनू को
सोनू ने भी किया इशारा, धीरे से मोनू को।
मोनू ने फिर बड़े जोर से, बाहर बाॅल उछाली
उसे उठाने चारों ने, पानी में दौड़ लगा ली।

उस रंगीन बाॅल के पीछे, चारों हुए दीवाने
आगे-पीछे दौड़ रहे, कोई भी हार न माने।
बादल ने भी देखी जब, इन बच्चों की मनमानी
वह भी लगा वहाँ बरसाने, रिमझिम रिमझिम पानी।
            ***

  10 -   गर्मी आई।
           ::::::::::::
उफ!गरमी का मौसम आया-
तेज धूप से मन घबराया,
वन-उपवन में प्यासे पंछी-
खोज रहे पानी और छाया ।

       सूरज की किरणें झुलसातीं
       दया-भाव मन में न लातीं,
       जिसने घर से कदम निकाले-
         उसको तुरत पसीना आया।

ए.सी.कूलर कोई चलाता
सीलिंग फैन कहीं घर्राता,
किसी किसी को भली लग रही-
आम, नीम बरगद की छाया ।

          आइसक्रीम  अहान को भाती
           रानू कोल्ड ड्रिंक घर लाती
           रोहन शरबत लेकर पीता- 
            परी को नींबू-पानी  भाया।

टिया सयानी 'लू ' के डर से
दोपहर में न निकलें घर से,
नन्हे हनु ने  भी आँखों पर
काला चश्मा आज लगाया ।
              ***

11-शिक्षक।
      ***
अपने शिक्षक कैसे हों, भला बताओ, कैसे हों?
राधाकृष्णन जी जैसे -या कलाम जी जैसे हों? जो बच्चों से प्यार करें,हँसकर बातें चारकरे
कभी स्वयं बच्चा बनकर बच्चों सा व्यवहार करें।

जो प्रतिभा को पहिचानें उनकी क्षमता को जानें।
अवसर देवें बढ़ने काभेद भाव कुछ ना मानें।
होवें  पुष्ट धारणाएँ तुष्टि पायें जिज्ञासाएँ।
समझ सकें विद्यार्थी की, आशा और अपेक्षाएँ।

बच्चों में विश्वास भरें,समुचित जतन-प्रयास करें
बने मार्गदर्शक उनके - सर्वांगीण विकास करें।
यह दायित्व सभी का है, शिक्षा का प्रतिदान करें
जिनसे हमको ज्ञान मिला, हम उनका सम्मान करें।
                       ***

12. - पाॅलीथीन
            ***
विपदा एक  नवीन, सामने आती
प्रतिदिन पाॅलीथीन, फैलती जाती।
घर का  हर सामान, इसी में लाते
जहाँ हुआ मन फेंक, वहीं फिर आते।

यह अविनाशी अंश, न गलता, सड़ता
यहाँ-वहाँ फिर संग,   हवा के उड़ता।
बंजर धरती  करे  प्रदूषित पानी
खाकर तड़पे गाय, अबोध अजानी।

आवश्यक सहयोग , आज जन-जन का
कम से कम  उपयोग, हो इस दुश्मन का।
यह   कचरे का  ढेर,  न ज्यादा  जोड़ें
बहुत हो चुकी  देर ,  पाॅलिथिन छोड़ें।
                   #राजेंद्र श्रीवास्तव #

13-      आकाश (गीत)
              @@

तारों से  आकाश खिला  है।

कुछ छोटे कुछ बड़े सितारे
टिम टिम चमक रहे हैं सारे।
अडिग और स्थिर बैठे सब-
जिनको जो स्थान मिला है। तारों से....

ओर-छोर   कोई  न  पाये
इस कारण अनंत कहलाये।
दूर क्षितिज पर  लगता, जैसे -
धरती से आकाश मिला है।  तारों से....

रात चंद्रमा, सूरज दिन में
विचरण करते मुक्त गगन में।
जग को आलोकित करने का-
एक अहम्  दायित्व मिला है।  तारों से...

साथ हवा का जब पा जाते
बादल भी नभ में उड़ जाते।
रह रह चमक दामिनी जाती-
टकराती जब मेघ-शिला है।  तारों से..

ग्रह - उपग्रह और पुच्छल तारे
तारा मण्डल विविध न्यारे।
मन्दाकिनी सरीखी  अनगिन
बहती "तारों की सलिला" है।

यह 'मन' भी आकाश सरीखा
कुछ दीखा और कुछ अनदीखा।
नीरव और निरभ्र कभी,  तो -
कभी, धुंध से ढंका मिला है । तारों से....
                       #राजेंद्र श्रीवास्तव #

14-     माँ...  
          ***
जीवन में जब जब दुख आया
विपदाओं  से जब  घबराया।
विषम क्षणों में तब माँ तुमको
अपने    आसपास  ही पाया।

                           रहतीं सदा     दाहिने- बाँए
                           ममता का आँचल फैलाए।
                           हँस कर हुलस हौसला देतीं
                           भागा साहस फिर आ जाए।

हारा थका हुआ घरआया
ऊर्जावान स्वयं को पाया।
जब सनेह से मेरे सिर पर
अपना कम्पित हाथ घुमाया।

                   थकन राह की , चिंता भारी
                   मिट जाती  सारी की सारी।
                   मिल जाती जब-जब पल भर को-
                   माँ ममत्व की छाँव तुम्हारी।
                               

15-        अंकुर
               ***
अंकुर कहीं दबा था, धरती में गहरे।
शुष्क कठोर परत के, थे भारी पहरे।
बीज दे रहा भोजन, अपना बचा खुचा।
वह भी लगभग बेवश, दिखता नुचा-नुचा।

आकांक्षा इतनी सी , जो अंकुर निकला।
बने सघन वह तरुवर, फूला और फला।
यह उत्कट जिजीविषा,  देखी बादल ने
टिप टिप  टिप टिप पानी, लगा तभी गिरने।

धरती ने भी त्यागा, अपना रूखापन
सफल हुई अंकुर की, महनत और लगन।
देख रहा वह सूरज, धरती और गगन
हौले हौले छू कर, जाता मंद पवन।

बीज पत्र के मध्य झाँकती वह कलिका
ज्यों महलों की छत पर ठहरी हो मलिका।
पनप रही यह आशा, अंकुर के मन में
अब वसंत आयेगा  , उसके जीवन में।
                

16-   आओ साथी
          🇳🇪🇳🇪🇳🇪
आओ साथी ध्वज फहरायें
सब मिलकर जन गण मन गाएँ।
हम सब एक माला के मोती -
जन जन को संदेश सुनाएँ।

एक-एक ग्यारह बन जाएँ
निर्बल का संबल बन जाएँ।
दीन जनों के राम बनें हम-
दुखियों के रहीम बन जाएँ।

छुआछूत का भूत भगाएँ,
ऊँच नीच का भेद मिटाएँ।
जाति पाँति के तोड़े बंधन -
देश-प्रेम में हम बंध जाएँ।

हम चाहे किसान बन जाएँ,
सीमा पर जवान बन जाएँ।
बनें चिकित्सक या अध्यापक -
अपना कार्य न हम बिसरायें।

वैसे हम बच्चे कहलाए,
बड़ी बात हम न कर पाएँ।
प्रथम और अंतिम अभिलाषा,
भारत के सपूत कहलाएँ।
          ***

17-    रोको बहता पानी
                 ****

रिमझिम रिमझिम कोमल स्वर में, कहती बर्षा रानी।
रोक सको तो बाल-साथियो, रोको बहता पानी।
पानी बिना शून्य जग सारा - पानी ही जीवन है।
पानी से ही जीवित हैं सब - वनस्पति व प्राणी।

पानी बिना बताओ कैसे - दिनचर्या हो पूरी।
कृषि, स्वास्थ्य, उद्योग सभी को - पानी बहुत जरूरी।
आसमान में छा जाते जब, बादल गहरे काले -
बरसाते पानी, तो धरती ओढ़े चूनर धानी।

आओ मिलकर एक साथ हम, यह संकल्प करेंगे।
घर हो अथवा बाहर जल को, व्यर्थ न बहने देंगे।
जितना आवश्यक हो उतना ही उपभोग करेंगे।
व्यर्थ बहेगा पानी  तो कहलायेगी  नादानी।

हम सब मिलकर सहज सरल सार्थक विधियाँ अपनाएँ।
कुआँ बावड़ी तालाबों तक-बर्षा-जल पहुचाएँ।
गाँव - गली का बर्षा-जल खेतों तक पहुचाएँगे
बुद्धिमान वह,जिसने पानी की कीमत पहिचानी

रिमझिम रिमझिम कोमल स्वर में कहती बर्षा रानी।
रोक सको तो बाल-साथियों, रोको बहता पानी।
                      ***

18. -  बिजली
        ⚡⚡⚡
बिजली कितने काम की बिजली
केवल नहीं नाम की बिजली।
बिजली बिना काम रुक जाते-
कस्बा शहर गाँव की बिजली।

बिजली - बिजलीघर से आती
लेकिन नजर नहीं यह आती।
खंभों पर पतले तारों पर-
घर-घर दौड़ लगाती बिजली।

टी. व्ही, फ्रीज, पंखे व कूलर
बड़ी मशीने कपड़े की मिल
भारी रेलगाड़ियों को भी -
पटरी पर दौड़ती बिजली।

खुद समझें सबको समझाएँ
आवश्यक हो तभी जलाएँ
उज्ज्वल हो आने वाला कल
आओ आज बचाये बिजली।
        ⚡⚡⚡⚡

19-   -  हाथी आया
          🐘🐘🐘

रवि चीखा रोहन चिल्लाया
हाथी आया हाथी आया।
जिसने सुना दौड़ कर आया
हाथी आया हाथी आया।

लम्बी सूँड, सूप से कान
रानू बोली - हे भगवान्!
कितनी भारी भरकम काया
हाथी आया हाथी आया।

आँखें कितनी छोटी छोटी
चमड़ी देखो कितनी मोटी।
खंभे जैसा कदम बढ़ाया
हाथी आया हाथी आया।

ताकतवर है फिर भी शाँत
बाहर को निकले दो दाँत।
इनसे कुछ न जाय चबाया
हाथी आया हाथी आया।

रानू बोली - "पापा आओ
इसके ऊपर मुझे बिठाओ।"
पीलवान ने उसे बिठाया
हाथी आया हाथी आया।
    *****

20-    हाथ पैर मुँह धोकर आओ
                        *****
रानू खेल-कूद कर आई
घर में आते ही चिल्लाई।
मम्मी जल्दी किचन में आओ
भूख लगी है खाना लाओ।
          
               मम्मी बोली-" मत चिल्लाओ
               पहले वाॅशरूम में जाओ
               मिट्टी धूल सभी धुल जाए
                हाथ पैर मुँह धोकर आओ।

बिना हाथ-मुँह धोये यदि हम
ऐसे ही खाना खाएँगे।
तो फिर बहुत सूक्ष्म रोगाणु
भोजन में ही मिल जाएँगे।
  
               भोजन के संग पहुँच पेट में
               रोग बहुत से फैलाएँगे।
                बीमारी से लड़ते-लड़ते
                स्वस्थ नहीं हम रह पाएँगे।

इन सबसे यदि बचना है तो-
नियम आज ही से अपनाएँ
भोजन करने से पहले हम
हाथ-पैर-मुँह   धोकर आएँ।
            ***

21-           सर्दी आई
                   *****         

सर्दी आई, सर्दी आई
लाओ कम्बल और रजाई।
काँप रहे हैं सभी ठंड से-
ठिठुरन और कँपकपी आई।

कैसे कोई इस जाड़े में
  अपना गर्म बिस्तरा छोड़े।
  मन करता है, कोई झट पट
  लाए गरमागरम पकोड़े।

  हाथ सेंकने को मिल जाए
   हीटर अथवा गरम अंगीठी।
   और चाय-काफ़ी हो जाए
   अदरक वाली  मीठी-सीठी

    चारों तरफ धुंध छायी है
     दूर-पास का समझ न आए।
     सुबह दस बजे तक सूरज भी-
      आसमान में नजर न आए।

       सबसे कठिन काम ऐसे में
       दादू संग सैर पर जाना।
       और सैर से वापस आकर
        मंजन करना और नहाना।
                *****
    
22-      प्यारा टाॅमी
                 ***
  रात दो बजे टाॅमी भौंका
   सुनकर चौकीदार भी चौंका।
   चारों तरफ नजर दौड़ाई
     हिलती दिखी एक परछाई।

    कड़क दार आवाज लगाई
     जोर से पूछा - "कौन है भाई।"
      सीटी बजा मचाया शोर
       डर के मारे  भागा चोर।

      टाॅमी ने उसको दौड़ाया
      चोर वहाँ से भाग न पाया।
       टाँग पकड़ कर उसे गिराया
       सीने पर चढ़ कर गुर्राया।

      आये सभी मोहल्ले वाले
      किया चोर को पुलिस हवाले
      टाॅमी ने   शाबाशी   पाई
      उसने झबरी पूँछ हिलाई।
                *****

23-     अच्छे बच्चे, प्यारे बच्चे
                     *****
चुन्नू के संग मुन्नू जी भी अपना स्वास्थ्य बनाते हैं
सूर्योदय से पहले उठकर रोज टहलने जाते हैं।
करते है दातौन नीम की, स्नान सबेरे करते हैं
कपड़े स्वच्छ सदैव पहनते,रोगभी उनसे डरते हैं

गर्मी सर्दी या बर्षा हो, प्रतिदिन शाला जाते हैं
सुनते और समझते जो अध्यापक उन्हें पढ़ाते हैं
करते नहीं शोरगुल न शैतानी उनको भाती है
सीधे घर को दौड़ लगाते छुट्टी जब हो जाती है।

काॅपी पुस्तक पेन पेंसिल रखते सदा यथास्थान
कपड़े बदल हाथ-मुँह धोकर,जाते रोज खेल मैदान
खेल-कूद कर साँझ ढले,वापस घर पर आ जाते हैं
माँ परोस दे जो थाली में हँसी-खुशी खा जाते हैं

खाना खा कर मनोयोग से, अध्ययन में जुट जाते हैं
जो पाया गृह कार्य उसे सबसे पहले निबटाते हैं।
रात दस बजे छोड़ पढ़ाई, बिस्तर पर सो जाते हैं
अच्छे बच्चे, मीठे-मीठे सपनों में खो जाते हैं।
                   *****

24-       उड़ गया तोता

रोहन के आँगन में पिंजरा
पिंजरे के भीतर था तोता।
रोहन ने पिंजरा खोला तो-
आसमान में उड़ गया तोता।

           रोहन खाली पिंजरा लाया
            रोया खूब, बहुत चिल्लाया।
             माँ ने पूछा- "तू क्यों रोता?"
             रोहन बोला - "उड़ गया तोता!"

माँ ने कहा - "चलो जाने दो
उसको भी खुलकर गाने दो।
खुली हवा में  साँसे लेकर -
आसमान में   उड़ जाने दो।"

                "बेटा- बात है   सीधी-सादी
                 जो सच है तुमको बतला दी।
                  जैसे हमको - तुमको प्यारी
                   उसको भी प्यारी 'आजादी'।"
                     *****

- 25     चलो! करें कुछ काम

जागो! जागो! आलस त्यागो
चलो करें कुछ काम।
मंत्र वाक्य यह हम सबका हो
  " है आराम हराम।"

सारे जग को खुशियाँ बाँटें
फूल बिछाएँ, हटा कर काँटे।
करें निरंतर सबकी सेवा-
नि:स्वारथ निष्काम।

घर-घर में आए खुशहाली
रोज मनाएँ   ईद-दीवाली।
मंत्र एकता का ही गूँजे
सुबह  दोपहर  शाम।

जो औरों के लिए जीए हैं
जिन्होंने अच्छे काम किए हैं
उनका ही रोशन होता है
इस दुनिया में नाम।

तुम हो भारत भाग्य विधाता
तुम ही कल के युग निर्माता।
आशा व विश्वास हो तुम ही
बच्चो तुम्हे सलाम।
            *****

26-  भारत देश हमारा

सब देशों मे देश हमारा
जैसे तारों में 'ध्रुव तारा'
प्यारा,प्यारा सबसे प्यारा
प्यारा भारत  देश  हमारा।

फूल यहाँ खुशबू फैलाएँ
गीत प्रेम के पंछी गाएँ।
जय जवान जय जय किसान का
हर पल यहाँ गूँजता नारा।

लहर लहर लहराए गंगा
फहर फहर फहराए तिरंगा।
आओ मिलकर गाएँ हम सब
जन गण मन अधिनायक प्यारा।

मन की बात तुम्हे बतला दी
हमको प्यारी है आजादी।
अमर रहा है,  अमर रहेगा
युग-युग तक 'गणतंत्र' हमारा।
             ***

27-    कैच आउट

पिच पर गेंद उछलती आई
आकर बल्ले से टकराई।
बेट्समेन से उसे घुमा कर
बाउन्ड्री की दिशा दिखाई।

कई फील्डर दौड़े-भागे
बाॅल भागती उनसे आगे।
रोक न पाए हो गया चौका
गेंदबाज ने माथा ठोका।

बाॅलर ने गुस्से में आकर
अगली बाॅल करी बाउन्सर।
बेट्समेन ने मारा छक्का
बाॅलर रह गया हक्का-बक्का।

बाॅलर ने खुद को समझाया
बाॅल को आउट स्विंग कराया।
बैट्समैन कुछ समझ न पाया
थर्ड मैन को  कैच  थमाया ।
               ****

पता:-
  राजेंद्र प्रसाद श्रीवास्तव
  आर एम पी नगर फेस - 1
    विदिशा
जिला - विदिशा म.प्र
   464001
मोबाइल - 9753748806.
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